दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, जीवनसाथी का संबंध बनाने से मना करना मानसिक क्रूरता
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, जीवनसाथी का संबंध बनाने से मना करना मानसिक क्रूरता
वर्तमान भारत, स्टेट डेस्क
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि जीवनसाथी का संबंध बनाने से मना करना मानसिक क्रूरता का एक रूप हो सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यह तभी मान्य होगा जब संबंध बनाने से इनकार करना लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक हो।
मामले में, एक पति ने अपनी पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक की मांग की थी। पति का आरोप था कि पत्नी उसे घर जमाई बनाना चाहती है और इसलिए वह उसके साथ संबंध बनाने से मना करती है।
हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि पति के आरोपों में सच्चाई है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी का लगातार और जानबूझकर संबंध बनाने से इनकार करना पति के लिए मानसिक रूप से प्रताड़नापूर्ण है।
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक संबंध में शारीरिक संबंध एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब कोई जीवनसाथी जानबूझकर और लगातार दूसरे जीवनसाथी को शारीरिक संबंध से वंचित करता है, तो यह मानसिक क्रूरता का एक रूप हो सकता है।
इस फैसले से ऐसे मामलों में तलाक के लिए राह आसान हो सकती है, जहां एक जीवनसाथी लगातार और जानबूझकर दूसरे जीवनसाथी को शारीरिक संबंध से वंचित करता है।
क्या है मानसिक क्रूरता
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत, तलाक के लिए एक आधार मानसिक क्रूरता है। मानसिक क्रूरता को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है:
- किसी जीवनसाथी द्वारा दूसरे जीवनसाथी को जानबूझकर और लगातार शारीरिक या मानसिक पीड़ा या संकट पहुंचाना।
- किसी जीवनसाथी द्वारा दूसरे जीवनसाथी को इस तरह से व्यवहार करना जिससे वह अपने जीवन में खुशी या शांति से रह न सके।
मानसिक क्रूरता के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:
- शारीरिक या मानसिक शोषण
- धमकी या डराना-धमकाना
- अपमान करना या नीचा दिखाना
- आर्थिक या सामाजिक बहिष्कार
- व्यभिचार या अन्य यौन संबंध
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो ऐसे मामलों में तलाक के लिए राह आसान कर सकता है, जहां एक जीवनसाथी लगातार और जानबूझकर दूसरे जीवनसाथी को शारीरिक संबंध से वंचित करता है। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि भारतीय अदालतें वैवाहिक संबंधों में शारीरिक संबंध को एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानती हैं।