भाई आप नेता हो तो ऐसे हो! चार बार विधायक रहे सभापति बाबू ने अपने खाते में सिर्फ 50 रुपये छोड़े थे
वर्तमान भारत, स्टेट डेस्क
2 जनवरी को सिवान के बसंतपुर प्रखंड के हरायपुर निवासी सभापति सिंह की 107वीं जयंती है। सभापति बाबू के नाम से मशहूर इस स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व विधायक की जयंती पर उनके स्मारक स्थल पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
सभापति बाबू का जन्म 2 जनवरी, 1916 को हुआ था। बचपन से ही देश की आजादी के लिए उनके मन में जुनून था। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए कई आंदोलनों में भाग लिया और अंग्रेजों की यातनाएं सहीं।
आजादी के बाद सभापति बाबू ने राजनीति को देश सेवा का माध्यम बनाया। वे 1957, 1962, 1967 और 1972 में विधायक चुने गए। 1967 में वे महामाया बाबू के मंत्रिमंडल में वित्त राज्य मंत्री भी रहे।
सभापति बाबू सादगी और त्याग की प्रतिमूर्ति थे। वे कभी भी अपने लिए धन-संपत्ति का संचय नहीं किया। उनके निधन के बाद उनके खाते में मात्र 50 रुपये बचे थे।
सभापति बाबू के जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि राजनीति को देश सेवा का माध्यम बनाया जा सकता है। वे एक ऐसे नेता थे जो अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे और हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते रहे।
सभापति बाबू की जयंती पर विशेष कार्यक्रम की तैयारी पूरी
सभापति बाबू की जयंती पर उनके स्मारक स्थल पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधि, समाजसेवी और ग्रामीण शामिल होंगे। कार्यक्रम में सभापति बाबू के जीवन पर प्रकाश डाला जाएगा और उनके आदर्शों को याद किया जाएगा।
कार्यक्रम की तैयारी पूरी कर ली गई है। सभापति बाबू के स्मारक स्थल को साफ-सफाई कर सजाया गया है। कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था की गई है।
सभापति बाबू के परिवार के सदस्यों ने कहा कि वे अपनी दादी-दादा को याद कर भावुक हैं। उन्होंने कहा कि सभापति बाबू हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते थे। वे एक सच्चे नेता थे।