प्रेग्नेंट बादल, जो ला देती है तबाही
जम्मू-कश्मीर में शुक्रवार शाम अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से आई बाढ़ में 16 लोगों की मौत हो गई है और 40 लोग अभी लापता बताए जा रहे हैं। इनकी तलाशी के लिए राहत और बचाव अभियान जारी है और करीब 15,000 लोगों को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाया है। इस घटना ने मौके पर मौजूद श्रद्धालुओं को भयभीत करके रख दिया। आइये जानते हैं आखिर क्या होता है बादल फटना और ऐसी किन घटनाओं ने भारी तबाही मचाई है।
क्या होता है बादल फटना?
बादल फटने की घटना को मेघ विस्फोट भी कहते हैं। जिस तरह पानी से भरे गुब्बारे के फूटने पर उसका पानी अचानक बाहर आता है, ठीक वैसे ही बादल फटने से उसमें भरा पानी तेजी से नीचे गिरता है। इसका बहाव उसकी राह में आने वाली हर चीज को बहाकर ले जाता है। बादल फटने से एक सीमित क्षेत्र में कई लाख लीटर पानी धरती पर गिरता है। इसमें एक घंटे में 100 मिलीमीटर (4.94 इंच) बारिश होती है।
आखिर क्यों फटते हैं बादल?
पहाड़ी इलाकों में बारिश के मौसम में गर्म हवा के रास्ते में बाधा आने पर नमी वाले बादल फट जाते हैं और इससे जलसैलाब आता है। पहाड़ी इलाकों में बरसात के दौरान भौगोलिक परिस्थिति व जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। मानसून के समय में नमी के साथ बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं और हिमालय पर्वत उनका रास्ता रोकता है। ऐसे में गर्म हवा के झोंके के टकराने से बादल फट जाते हैं।
बादल फटने के अन्य प्रमुख कारण क्या है?
बादल फटने के अन्य कारणों में बादलों के रास्ते में ऊंचे पहाड़ आना, हरित पट्टी का लगातार कम होना, जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए की जा रही पेड़ों की कटाई, शहरीकरण में इजाफे से लगातार बढ़ता तापमान, ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के लिए जंगलों पर दबाव और बारिश के दौरान गर्म हवा का संचार प्रमुख कारण है। इससे साफ है कि इस प्राकृतिक घटना के पीछे मानवीय हस्तक्षेप भी बड़ा कारण बनकर उभर रहा है।
सबसे ज्यादा फटते हैं काले बादल
आपको हैरानी होगी कि आसमान में सबसे नीचे गरजने वाले काले और रूई जैसे दिखने वाले बादल सबसे ज्यादा फटते हैं। हर साल बारिश में 3,000 किलोमीटर की दूरी तय कर ये बादल बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उत्तर दिशा में पहुंचते हैं।
प्रेग्नेंट क्लाउड भी कहलाते हैं फटने वाले बादल
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने का मतलब एक जगह पर अचानक एकसाथ भारी बारिश होना है। बादल फटने से पानी से भरे बादल की बूंदें तेजी से अचानक जमीन पर गिरती है। इसे फ्लैश फ्लड या क्लाउड बर्स्ट भी कहते हैं। इसी तरह अचानक तेजी से फटकर बारिश करने वाले बादलों को प्रेगनेंट क्लाउड भी कहते हैं। यह घटना प्रकृति का सबसे रौद्र रूप मानी जाती है और इसमें बचने की संभावना बहुत कम होती है।
बादल फटने से होने वाले नुकसान से कैसे बचें?
बादल फटने के दौरान जान-माल का भारी नुकसान होता है। इसको कम करने के लिए मौसम विभाग द्वारा कई तरह के सुझाव दिए जाते हैं। इसमें पहाड़ों में लोगों को ढलान वाली कच्ची जगह पर मकान बनाने से परहेज करना चाहिए, ढलान वाली जगह मजबूत होने पर ही निर्माण किया जाना चाहिए, पहाड़ी क्षेत्रों में दरकी हुई जमीन में बारिश का पानी घुसने से रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए और नदी नालों से दूरी बनानी चाहिए।
भारत में पहली बार 1970 में दर्ज की गई थी बादल फटने की पहली घटना
भारत में मौसम विभाग ने पहली बार 1970 में बादल फटने की घटना को रिकॉर्ड किया था। उस दौरान हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के बरोट में एक मिनट में 38.10 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई। इससे कई गांवों में बाढ़ आई थी।
भारत में बादल फटने की बड़ी घटनाएं कौनसी है?
अगस्त 1998 में उत्तराखंड के कुमाऊं जिले के काली घाटी में बादल फटने से 250 लोगों की मौत हुई थी। मृतकों में प्रसिद्ध उड़िया डांसर प्रोतिम बेदी सहित कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले करीब 60 लोग थे। अगस्त 2010 में जम्मू-कश्मीर के लेह में बादल फटने से 1,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 400 से अधिक लोग घायल हुए थे। सितंबर 2012 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बादल फटने से 45 लोगों की मौत हुई थी।
केदरानाथ घाटी की घटना में हुई थी 6,000 लोगों की मौत
16-17 जून, 2013 में केदारनाथ में हुई बादल फटने की घटना ने सबसे ज्यादा तबाही मचाई थी। इसमें करीब 6,000 लोगों की मौत हुई थी। इसी तरह सितंबर 2014 में कश्मीर घाटी में बादल फटने से करीब 200 लोगों की मौत हुई थी। 14 अगस्त, 2017 को पिथौरागढ़ के मांगती नाला के पास बादल फटने से आधा दर्जन लोगों की मौत हुई थी। 19 अक्टूबर, 2021 को उत्तराखंड के रामगढ़ में बादल फटने से 12 लोगों की मौत हुई थी।